Jan 18, 2012

'कुछ तो आदत से मज़बूर हैं और कुछ फ़ितरतों की पसंद है

'कुछ तो आदत से मज़बूर हैं और कुछ फ़ितरतों की पसंद है ,
ज़ख़्म कितने भी गहरे हों?? मैं उनकी दुहाई पे नही लिखता.'

'दुनिया का क्या है हर हाल में, इल्ज़ाम लगाती है,
वरना क्या बात?? कि मैं कुछ अपनी.. सफ़ाई पे नही लिखता.'

इन अमीरों पे करू कुछ अर्ज़.. मगर एक रुकावट है,
मेरे उसुल हैं मैं गुनाहों की.. कमाई पे नही लिखता.'

'उसकी ताक़त का नशा.. हर हाल में बराबर है !!
मेरे दोस्तों!! मैं मज़हब की, लड़ाई पे नही लिखता.'

'समंदर को परखने का मेरा, नज़रिया ही अलग है यारों!!
मिज़ाज़ों पे लिखता हूँ मैं उसकी.. गहराई पे नही लिखता.'

'पराए दरद को , मैं ग़ज़लों में महसूस करता हूँ ,
ये सच है मैं पेड़ से फल की, जुदाई पे नही लिखता.'

'तजुर्बा तेरी मोहब्बत का'.. ना लिखने की वजह बस ये!!
क़ि 'शायर' इश्क़ में ख़ुद अपनी, तबाही पे नही लिखता...!!!"


'कुछ तो आदत से मज़बूर हैं और कुछ फ़ितरतों की पसंद है ,
ज़ख़्म कितने भी गहरे हों?? मैं उनकी दुहाई पे नही लिखता.'

'दुनिया का क्या है हर हाल में, इल्ज़ाम लगाती है,
वरना क्या बात?? कि मैं कुछ अपनी.. सफ़ाई पे नही लिखता.'

इन अमीरों पे करू कुछ अर्ज़.. मगर एक रुकावट है,
मेरे उसुल हैं मैं गुनाहों की.. कमाई पे नही लिखता.'

'उसकी ताक़त का नशा.. हर हाल में बराबर है !!
मेरे दोस्तों!! मैं मज़हब की, लड़ाई पे नही लिखता.'

'समंदर को परखने का मेरा, नज़रिया ही अलग है यारों!!
मिज़ाज़ों पे लिखता हूँ मैं उसकी.. गहराई पे नही लिखता.'

'पराए दरद को , मैं ग़ज़लों में महसूस करता हूँ ,
ये सच है मैं पेड़ से फल की, जुदाई पे नही लिखता.'

'तजुर्बा तेरी मोहब्बत का'.. ना लिखने की वजह बस ये!!
क़ि 'शायर' इश्क़ में ख़ुद अपनी, तबाही पे नही लिखता...!!!"


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