Oct 30, 2014

बनकर नदी जब बहा करूंगी

बनकर नदी जब बहा करूंगी,
तब क्या मुझे रोक पाओगे?
अपनी आँखों से कहा करूँगी,
तब क्या मुझे रोक पाओगे?

हर कथा रचोगे एक सीमा तक
बनाओगे पात्र नचाओगे मुझे
मेरी कतार काटकर तुम
एक भीड़ का हिस्सा बनाओगे मुझे

मेरी उड़ान को व्यर्थ बता
हंसोगे मुझपर, टोकोगे मुझे
एक तस्वीर बता, दीवार पर चिपकाओगे मुझे।
पर जब ...
अपने ही जीवन से कुछ पल चुराकर
मैं चुपके से जी लूँ!
तब क्या मुझे रोक पाओगे?
तुम्हे सोता देख,
मैं अपने सपने सी लूँ!
अपनी कविता के कान भरूंगी,
तब क्या मुझे रोक पाओगे?
जितना सको प्रयास कर लो इसे रोकने की,
इसके प्रवाह का अन्दाज़ा तो मुझे भी नहीं अभी!

अब तो किसी भी बात पे,ऐतबार नहीं होता

अब तो किसी भी बात पे,ऐतबार नहीं होता
होते हैं बस समझौते दिलों के,कोई प्यार नहीं होता


कितना भी समझा लें हम,इस दिल-ए-नादान को
एक क़तरा कभी,कोई सागर नहीं होता


दिल में लिये हसरत किसी की,ये उम्र गुज़र जाती है
के तक़दीर पे किसी की अपनी,इख्तियार नहीं होता


लगते हैं जो पल सुहाने,वो हैं मेरे बस ख्वाबों के
हकीक़त में कभी ख़ुशी का,दीदार नहीं होता


ढल जाते हैं ये अश्क,एक और ग़म की राह लिये
इन होंठों को अब किसी हंसी का,इंतज़ार नहीं होता

Oct 29, 2014

तू कह दे तो मैं तेरा बन जाऊं.

मेरे अल्फाजों कों तुने ठुकराया,इश्क कहता है कि शायर बन जाऊंमेरे ज़ज्बातों कों तुने ठोकर में उड़ाया,वो कहते हैं कि थोडा कायर बन जाऊं.


कुछ खास नहीं है मेरे पास बस प्यास है,ताउम्र तुझे देखने कि आस हैहै तेरे तसव्वुर का मुझे इन्तेजार,तू इस दिल-ए-नादान के लिए खास है


ना कर यूँ मुझसे नफ़रत ए हुस्न-ए-वफ़ा,ना अपने दिल कों दे तू यूँ दगातेरे तबस्सुम की मुझे तलाश है,तू कहे तो घायल बन जाऊं


कुछ ना दिया मैंने तुझे दर्द-ए-दिल के सिवा,और तुझे मैंने दिया है ज़फामाफ करना तेरी फितरत थी कभी,बस एक और बार तू निभा दे वफ़ा


तेरे अश्कों कों अपनी आँखें दूँ मैं,तेरे कांपते लबों कि कसम है,है निखिल बदनाम यहाँ,तू कह दे तो मैं तेरा बन जाऊं.

अँधेरे चंद लोगों का अगर मक़सद नहीं होते

अँधेरे चंद लोगों का अगर मक़सद नहीं होते

यहाँ के लोग अपने आप में सरहद नहीं होते


न भूलो, तुमने ये ऊँचाईयाँ भी हमसे छीनी हैं

हमारा क़द नहीं लेते तो आदमक़द नहीं होते


फ़रेबों की कहानी है तुम्हारे मापदण्डों में

वगरना हर जगह बौने कभी अंगद नहीं होते


तुम्हारी यह इमारत रोक पाएगी हमें कब तक

वहाँ भी तो बसेरे हैं जहाँ गुम्बद नहीं होते


चले हैं घर से तो फिर धूप से भी जूझना होगा

सफ़र में हर जगह सुन्दर— घने बरगद नही होते

किसी के बाप का हिन्दोस्तान थोड़ी है

अगर ख़िलाफ़ हैं होने दो जान थोड़ी है
ये सब धुआँ है कोई आसमान थोड़ी है

लगेगी आग तो आएँगे घर कई ज़द में
यहाँ पे सिर्फ़ हमारा मकान थोड़ी है

मैं जानता हूँ के दुश्मन भी कम नहीं लेकिन
हमारी तरहा हथेली पे जान थोड़ी है

हमारे मुँह से जो निकले वही सदाक़त है
हमारे मुँह में तुम्हारी ज़ुबान थोड़ी है

जो आज साहिबे मसनद हैं कल नहीं होंगे
किराएदार हैं ज़ाती मकान थोड़ी है

सभी का ख़ून है शामिल यहाँ की मिट्टी में
किसी के बाप का हिन्दोस्तान थोड़ी है

घरवाली- बाहरवाली

घरवाली- बाहरवाली

चेहरे पे सौम्यता आँखों में लाज की लाली हो,ऐसी मेरी घरवाली हो.
चेहरे पे शरारत नैन नशे की प्याली हो,ऐसी वो बाहरवाली हो.

घरवाली ऐसी हो की

साड़ी से जो खुश हो जावे,पति सेवा बस ध्यान में लावे.
जींस टॉप से दूर रहे जो,पूज्य हैं आप ये कहे जो.
जितने चाहूँ उतने बच्चे जन दे,हर पल अपना तन मन दे.
सास ससुर को खीर खिलावे,मम्मी के वो पावं दबावे.
फ़ोन से मेरे दूर रहे, पैसों से मजबूर रहे.
भजन कीर्तन का शौक हो, चारदीवारी बस उसकी रौनक हो.
परपुरुष जिसको पाप लगे, उमदराज लोग बाप लगे.
चाय से लेकर भोजन तक सबका उसको ध्यान रहे.
शारीरिक भूख से सात्विक भूख तक सबका उसको सम्मान रहे.
फिगर से लैला ना भी लगे पर मन से वो सावित्री हो.
मजाक की बातें भाये जिसको थोड़ी सी कवियत्री हो.
मेरे लक्ष्य में जिसकी नैया पार लगे.
उसकी आँखों में धुन हो मेरी,बस मेरा वो प्यार लगे.
जिसके वंश में संस्कृति मन में संस्कार हो.
मेरे चरणों की दासी हो बस मेरा अधिकार हो.

बाहर वाली ऐसी हो की

जींस टॉप को खास कहे वो या उससे भी कपडे कम हों.
रिश्ते की ना बात करे वो, इमोशनल लफड़े कम हों.
फास्ट फ़ूड में मस्त रहे,मेरी बाँहों में पस्त रहे.
दारू सुट्टा जिसको भाये,जब भी बुलावूँ तब आ जाये.
अमीर बाप की बेटी हो,सब मेरे बिल देती हो.
सारी किस्म की फिल्में देखे,मेरे तन को खूब निरेखे.
फिगर हो जिसकी अच्छी खासी,बॉडी को बस दे शाबासी.
बिना शादी के साथ रहे,जो जी चाहे दिल खोल कहे.
फ्यूचर की जिसको चिंता न हो,मेरे नाकामी पे शर्मिंदा न हो.
हर बातो को कुल कहे,गधे को ब्यूटीफुल कहे.
दिन रात मस्ती दे ऐसी, गांजे की ऐसी की तैसी.

दिल करता तुमको नशीली ग़ज़ल लिखूं.

दिल करता तुमको नशीली ग़ज़ल लिखूं.
नाजनीन कहूँ या खिलता कमल लिखूं.
चांदनी कहूँ या ताजमहल लिखूं.
बेवफा कहूँ या वफ़ा का पल लिखूं.
हूर कहूँ या उर्वशी का दल लिखूं.
ये मिज़ाजे इश्क हैं,इश्क के आगोश में हूँ.
इश्क को महक लिखूं या कोई दलदल लिखूं.
मेरी साँसों में बिखर जाओ तो अच्छा होगा;
बन के रूह मेरे जिस्म में उतर जाओ तो अच्छा होगा;
किसी रात तेरी गोद में सिर रख के सो जाऊं;
फिर उस रात की कभी सुबह ना हो तो अच्छा होगा।

जब कोई ख्याल दिल से टकराता है;
दिल ना चाह कर भी, खामोश रह जाता है;
कोई सब कुछ कहकर, प्यार जताता है;
कोई कुछ ना कहकर भी, सब बोल जाता है।


माना कि किस्मत पे मेरा कोई ज़ोर नही;
पर ये सच है कि मोहब्बत मेरी कमज़ोर नही;
उस के दिल मे, उसकी यादो मे कोई और है लेकिन;
मेरी हर साँस में उसके सिवा कोई और नही।

करिये तो कोशिश हमको याद करने की;
फुर्सत के लम्हे तो अपने आप मिल जायेंगे;
दिल में अगर है चाहत हमसे मिलने की;
बहाने मिलने के खुद-ब-खुद बन जायेंगे।

रात होगी तो चाँद दुहाई देगा;
ख्वाबों में आपको वह चेहरा दिखाई देगा;
ये मोहब्बत है ज़रा सोच कर करना;
एक आंसू भी गिरा तो सुनाई देगा।

ऐ आशिक तू सोच तेरा क्या होगा;
क्योंकि हशर की परवाह मैं नहीं करता;
फनाह होना तो रिवायत है तेरी;
इश्क़ नाम है मेरा मैं नहीं मरता।

जो रहते हैं दिल में वो जुदा नहीं होते;
कुछ एहसास लफ़्ज़ों से बयां नहीं होते;
एक हसरत है कि उनको मनाये कभी;
एक वो हैं कि कभी खफा नहीं होते।