Oct 30, 2014

अब तो किसी भी बात पे,ऐतबार नहीं होता

अब तो किसी भी बात पे,ऐतबार नहीं होता
होते हैं बस समझौते दिलों के,कोई प्यार नहीं होता


कितना भी समझा लें हम,इस दिल-ए-नादान को
एक क़तरा कभी,कोई सागर नहीं होता


दिल में लिये हसरत किसी की,ये उम्र गुज़र जाती है
के तक़दीर पे किसी की अपनी,इख्तियार नहीं होता


लगते हैं जो पल सुहाने,वो हैं मेरे बस ख्वाबों के
हकीक़त में कभी ख़ुशी का,दीदार नहीं होता


ढल जाते हैं ये अश्क,एक और ग़म की राह लिये
इन होंठों को अब किसी हंसी का,इंतज़ार नहीं होता

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